अन्जानी राहों में,
खो जाता,
मन मेरा,
देखता रहता है
भीतर से कोई ।
जान ना पाया
बस पूछता रहा हूँ
कौन हो,
कौन हो,
कौन हो ?
वह हँसता होगा,
मुस्कराता होगा,
देखता होगा
जब बेबसी मेरी।
क्या करूँ,
समय,
ठहरता नही।
कभी इन्तजार उसने,
ना मेरा किया।
ना जाने कब तक
ये रॊशन करेगा
कमजोर जलता हुआ ये दीया।
तूफान बन जो,
दीया बुझाए
किस के कहने से,
तुम यहाँ आए?
क्यों मौन हो?
कौन हो,
कौन हो,
कौन हो?
बरसो से प्रश्न ये
प्रश्न ही रहा है,
किसी ने कहाँ,
कब,
इसका
उत्तर दिया है।
जिसने भी जाना
उस को पहचाना
हो जाता है
मौन क्यों?
कौन हो
कौन हो
कौन हो?
बहुत बढिया मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
वाकई--कौन हो, कौन हो, कौन हो.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.