अनायास होता है
सब कुछ
हम तकते रह जाते हैं।
कोई अन्धेरा
कहीं से निकल
हम पर लिपट जाता है।
स्वयं से जन्मा ये अन्धकार
अब स्वयं को ही डराता है।
मेरे मन
तुम अब अन्धेरे की बात
मत करना।
ये शनै-शनै मिट जाएगा।
क्यूँकि कोई रात
कितनी भी काली या भयानक हो
रात के बाद
नया सवेरा आएगा ।
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ReplyDeleteसही कहा आपने । आशा है तो जीवन रसमय है....
ReplyDeleteparamjeetjee
ReplyDeleteaaj aapke rachnaaen dekhkar bahut khushee huee. jaree rakhiye.
Deepak Bharatdeep
सही है एक आशावादी रचना. बधाई.
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