१
पल में बदल जाते हैं चेहरों के रंग यहाँ ।
कल जो अपने थे , तलाशे उन्हें अब कहाँ।
बीती बातें हैं , दिलसे दिलको अब राह हुई,
अब सबने बसा लिए हैं अपने-अपने जहां।
२
तुमको नही गवारा, जमाना तुम्हें बदले।
अभिलाषाएं तुम्हारी, कैसे अब सम्भलें।
रोवोगे, तो भी तुम्हें, देखता है कौन,
हिरन ने किए कब किसी शेर पर हमलें।
३
अपने को ख्ररा कह दूँ,तुम को क्या कहूँ।
पानी तो है पानी, रंग उस मे क्या भँरू।
आकाश हो जैसा वही तो रंग दिखेगा।
चलना ही नियति है मंजिलका क्या करूँ।
४
अब फूल की सुरभि किसी एक की नही।
हरिक को अंक लेकर, उसकी महक बही।
कोसो ना भँवरें को,उसका कसूर क्या,
काँटोंमें बिधके मरना भाग्य है यही।
पल में बदल जाते हैं चेहरों के रंग यहाँ ।
ReplyDeleteकल जो अपने थे , तलाशे उन्हें अब कहाँ।
बीती बातें हैं , दिलसे दिलको अब राह हुई,
अब सबने बसा लिए हैं अपने-अपने जहां।
पल में बदल जाते हैं चेहरों के रंग यहाँ ।
ReplyDeleteकल जो अपने थे , तलाशे उन्हें अब कहाँ।
बीती बातें हैं , दिलसे दिलको अब राह हुई,
अब सबने बसा लिए हैं अपने-अपने जहां।
परमजीतजी,आपकी पूरी रचना बेहद अच्छी है!
मेरी ब्लॉग पे आपने इतना अच्छा कमेंट किया इसका बोहोत,बोहत धन्यवाद!
शमा
अच्छा है...
ReplyDeleteसही है, जारी रहें.
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है... हर चार लाईन से एक पूरी कविता बन सकती है... विस्तार करें...
ReplyDeleteएक और बात... आपके पेज पर स्लाईड शो के कारण पेज देर से डाऊनलौड होता है.. हो सकता है बहुत से पाठक इन्तजार न करते हों और लौट जाते हों...
अपने को ख्ररा कह दूँ,तुम को क्या कहूँ।
ReplyDeleteपानी तो है पानी, रंग उस मे क्या भँरू।
आकाश हो जैसा वही तो रंग दिखेगा।
चलना ही नियति है मंजिलका क्या करूँ।
बिलकुल सही और गहरे भाव…यहि तो जिन्दगी है…
सुनीता(शानू)
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