(आगरा की आग)
१.
अपनी लगाई आग में, जल रहे हैं लोग ।
आग का तो काम है जलना जलाना रोज ।
दूजे की भूल देख, अपनी इन्सानियत छोड़ी,
ना मालूम कहाँ खॊ गए हैं, आदमी के होश ।
२.
भीतर की आग, बाहर भी वही काम करेगी ।
आस-पास सब जगह, जहाँ पाँव धरेगी ।
पहले जरा उसका, इस्तमाल समझ ले इन्सां,
फिर आग यही, हरिक शै रोशन करेगी ।
३.
जलता है कोई शख्स अगर, यह आँख रोती है।
हर इक नयी कब्र में,नयी आग बोती है ।
सब जानते हैं कौन मुजरिम इस खता का है,
ना जाने फिर भी क्यूँ, इन्सानियत सोती है।
बहुत ही अच्छे मुक्त्क लिखे हैं।इस मुक्त्क मे बहुत अच्छा संदेस है-
ReplyDeleteभीतर की आग, बाहर भी वही काम करेगी ।
आस-पास सब जगह, जहाँ पाँव धरेगी ।
पहले जरा उसका, इस्तमाल समझ ले इन्सां,
फिर आग यही, हरिक शै रोशन करेगी ।
-तरनजीत-
आज कल के हालात पर बहुत अच्छे मुक्तक हैं।बहुत सही कहा है-
ReplyDelete.जलता है कोई शख्स अगर, यह आँख रोती है।
हर इक नयी कब्र में,नयी आग बोती है ।
सब जानते हैं कौन मुजरिम इस खता का है,
ना जाने फिर भी क्यूँ, इन्सानियत सोती है।
बहुत अच्छा लिखा है बाली जी. और बहुत सामयिक भी. धन्यवाद.
ReplyDeleteसही कहा. मन का द्वेष ही हमारे आस पास की हिंसा का कारण है.
ReplyDeleteआपके शब्दों में--
"भीतर की आग, बाहर भी वही काम करेगी ।आस-पास सब जगह, जहाँ पाँव धरेगी "
सब जानते हैं कौन मुजरिम इस खता का है,
ReplyDeleteना मालूम कहाँ खॊ गए हैं, आदमी के होश ।
बेबाक अभिव्यक्ति
मुझे आप के मुक्तक बहुत अच्छे लगे।
ReplyDeleteभीतर की आग, बाहर भी वही काम करेगी ।
आस-पास सब जगह, जहाँ पाँव धरेगी ।
पहले जरा उसका, इस्तमाल समझ ले इन्सां,
फिर आग यही, हरिक शै रोशन करेगी ।
बहुत बढिया मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
वाह परमजीत भाई. सही मुक्तक-सामायिक. बहुत खूब!! लिखते रहें.
ReplyDeleteबहुत बढिया मुकत्क हैं।
ReplyDeleteBahut badhiyaa muktak likhe hain.
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