Tuesday, November 20, 2007

इंतजार

उन सपनों का मैं क्या करूँ

जो अधूरे ही रह गए

किस का कसूर था या रब

जो आँसू बन कर बह गए।



अब रास्ता बदल-बदल कर

उन्हें ढूंढता रहता हूँ

अपनी मर्यादाएं तोड़

नदी-सा बहता हूँ।



अब संग चलनें को

तैयार कोई नही होता

अब मेरे गम से यहाँ

कोई नही रोता।



यदि मेरे अधूरे सपनें

किसी को कहीं मिल जाएं

किसी आँगन में वह फूल

कहीं खिल जाएं

तो मुझ को उस की

खबर कर देना

3 comments:

  1. सपना सच हो जाए तो.....? अच्छी लगी आपकी कविता , अनुभूति गहरी है , बधाईयाँ !

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