उन सपनों का मैं क्या करूँ
जो अधूरे ही रह गए
किस का कसूर था या रब
जो आँसू बन कर बह गए।
अब रास्ता बदल-बदल कर
उन्हें ढूंढता रहता हूँ
अपनी मर्यादाएं तोड़
नदी-सा बहता हूँ।
अब संग चलनें को
तैयार कोई नही होता
अब मेरे गम से यहाँ
कोई नही रोता।
यदि मेरे अधूरे सपनें
किसी को कहीं मिल जाएं
किसी आँगन में वह फूल
कहीं खिल जाएं
तो मुझ को उस की
खबर कर देना
Bahut sundar
ReplyDeleteसपना सच हो जाए तो.....? अच्छी लगी आपकी कविता , अनुभूति गहरी है , बधाईयाँ !
ReplyDeletesach ye bahut meningful hai....
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