आज हम इस तिरंगे का सम्मान कैसे कर रहे हैं । हमारे राजनेता कैसा जहर फैला रहे हैं,यही इस रचना मे बताने की कोशिश की है ।आज हमारे धर्म के ठेकेदार हमे ऐसे ही बाँट रहे हैं ।
एक बस्ती में
जिसमें हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
सभी रहते थे ।
हम सब आपस में हैं भाई-भाई
अक्सर कहते थे ।
लेकिन सभी के मन के भीतर
एक दूसरे को देख आग-सी जलती थी ।
एक को दूसरे की मौजूदगी
हमेशा ही खलती थी ।
जब भी कोई दिन त्यौहार आता था ।
हर कोई राग अपना-अपना गाता था ।
कहनें को वे सब भाई-भाई थे ।
लेकिन जरा-से मन मुटाव से
बन जाते कसाई थे ।
एक दिन उस बस्ती में
एक स्वतंत्रता सैनानी
रहनें को आया ।
उसके आने नें,
बस्ती का भाग्य चमकाया ।
एक उम्मीद जगी
शायद अब इस बस्ती को
नयी दिशा मिलेगी ।
प्रेम और एकता की
एक कलि खिलेगी ।
क्यूँकि सैनानी जान चुका था ।
इस बस्ती में रहने वालों के भीतर
क्या चलता रहता है ?
एक दूसरे के प्रति हमेशा
क्या खलता रहता है ।
वह जान चुका था
बस्ती वाले किसी भी त्यौहार पर
एक नही होते हैं ।
हमेशा इक-दूजे को नीचा दिखाने के लिए
राहों मे काँटें बोते हैं ।
इस लिए सैनानी ने विचारा
कोई ऐसा त्यौहार सोचा जाए
हरिक शख्स एक ही स्वर में गाए
जो दिन इन सभी को भाए ।
इस लिए उसे आजादी का दिन भाया ।
पन्द्राह अगस्त को जब तिरंगा लहराया ।
यह दिन हम बस्ती मॆ मनाएगें ।
तभी सब एक स्वर में गाएगें ।
सभी से यह दिन मनानें का आग्रह करूँगा ।
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई की आपसी नफरत को
आपसी प्यार के रंग से भरूँगा ।
इस लिए उसनें सारी बस्ती को
निमंत्रण दे डाला ।
हिन्दू,मुस्लिम,सिख, ईसाई के मुखियों के गले में
सम्मान का हार डाला ।
इस तरह निश्चित समय पर पूरी बस्ती
एक मंच पर रम गई ।
खुशगवार मौसम में
एक महफिल जम गई ।
सभी औपचारिकता निभानें के बाद
सबसे पहले स्वतंत्रता सैनानी ने माइक संम्भाला
"यह तिरंगा क्यूँ है हमें प्यारा ?"
इस पर प्रकाश डाला ।
उस के बाद हिन्दू भाई ने माइक संभाला
और बड़े गर्व से बोला-
"इस तिरंगे का पहला रंग
हमारे धर्म की ओर करता इशारा है"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है ।"
फिर ईसाई भाई ने माइक संम्भाला
और बड़े गर्व से बोला-
"इस तिरंगे का दूसरा रंग
हमारे धर्म की ओर करता इशारा है ।"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है ।"
इस के बाद मुस्लिम भाई ने माइक सम्भाला
और बड़े गर्व से बोला-
"इस तिरंगे का तीसरा रंग
हमारे धर्म की ओर करता इशारा है ।"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है ।"
यह सब देख-सुन कर
स्वतंत्रता सैनिक बड़ा परेशान हुआ ।
क्यूँकि अब एक सिख भाई का नाम ऐलान हुआ ।
स्वतंत्रता सैनिक समझ नही पा रहा था
कि सिख भाई अब क्या बोलेगा..
यह तो अब कुफ्र ही तोलेगा ।
क्यूँकि तिरंगे के तीनों रंग
हिन्दू,ईसाई,मुस्लिम ने बाँट लिए थे ।
इन्होनें जहर उगलने के
ये नये तरीके छाँट लिए थे ।
महफिल मे घिर गया बादल काला
जब उठकर सिख भाई ने माइक संम्भाला
और वह भी बड़े गर्व से बोला-
"सिख कौम शक्ति का नाम है
तिरंगे की खातिर इसी ने चुकाया
सब से बड़ा दाम है ।"
"अपने खून से इसे हमने पाला है ।
शक्ति का प्रतीक यह डंडा
हमने ही इस मे डाला है ।
जिसने तीनों रंगों को सम्भाला है ।"
"यह डंडा हमारा है"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है ।"
स्वतंत्रता सैनानी सोच रहा था-
क्या इसी लिए आजादी हमनें पाई थी
शहीदों ने अपनी जान गवाई थी
हमनें कैसा बनाया देश से नाता है
धर्म के नाम पर इसको बाँटा है ।
आज कभी दिल्ली मे,कभी गुजरात में,
धर्म के नाम पर आग लगाते हैं ।
अमीर गरीब को दबाते हैं ।
अपनें देश का हर नेता
आज बनता जा रहा भाँड है
अपनी ही जनता को पैरों तले कुचलने वाला
एक बिगड़ेल साँड है ।
कुर्सी की खातिर
जाति, मजहबों मे बाँटता है ।
पागल कुत्ते-सा सभी को काटता है ।
आजादी के नाम पर
इक-दूजे के मुँह पर थूकता है ।
साफ सुथरी जगहों पर भी
यह अब मूतता है ।
लेकिन ना जानें क्यूँ
आज भी कभी-कभी जब भारत के गाँवों में,
या किसी गरीब के मुँह से
देश भक्ति के गीत कभी सुनता हूँ ।
फिर से उम्मीद के सपनें बुनता हूँ ।
शायद कभी ये आगे आएगा
जाति,मजहबों की दिवारे तोड़ पाएगा
अपने भाईयों के साथ मिलके गाएगा
ये भारत हमारा है
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है"
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता…
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामना…
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें
ReplyDeleteपरमजीत जी
ReplyDeleteआपकी यह कविता इतनी भावना पूर्ण है कि उसे शब्दों में व्यक्त किया ही नहीं जा
सकता। आपने अपने हृदय के उद्गार जिस तरह व्यक्त किये हैं वह दिल को छू
लें वाले हैं ।
दीपक भारतदीप
बहुत ही सुन्दर कविता परमजीत जी। हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबढ़िया कविता!!
ReplyDeleteशुभकामनाएं
क्या इसी लिए आजादी हमनें पाई थी
ReplyDeleteशहीदों ने अपनी जान गवाई थी
हमनें कैसा बनाया देश से नाता है
धर्म के नाम पर इसको बाँटा है ।
बहुत ही सुंदर कविता है। सत्य और उदगारों का समन्वय दिल को छू गया।