मेरे चमन मे ये किसने लगा दी आग ।
पहली चिगांरीयां अभी बनी थी खाक ।
ओ,चमन के रहनुमाओं क्यूँ मौन बैठे हो,
जल जाएगा गुलिस्तां टूटेगें सभी ख्वाब।
२.
क्या ये है जिन्दगी, राह फूल खारों की।
बनते बिगड़ते कारवाँ, ओ-बहारों की।
खेलती है कश्ती मोहब्बत मे तूफां से,
उम्मीद बनी रहती जहाँ किनारो की।
३
बुरी नही है यह, जो काली रात आई है ।देखों तो, सितारों की मोहक बारात लाई है ।
बड़ी ही शांत है यह तो जरा चिन्ता संगमें है,
सुबह होती है कब कैसे,यही एहसास लाई है।
दूसरा ज्यादा सटीक है, बहुत अच्छा, बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सुन्दर मुक्तक, बधाई!!
ReplyDeleteअच्छे हैं लिखते रहिये
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है बाली भाई... बाल की खाल निकालेंगे तो हर मुक्तक से एक सुन्दर कविता निकल आयेगी....
ReplyDeleteaapko aaj pahli baar padhne ka awasar mila aur aapki ye panktiyan ki abhi chaman chingari se khak bana diya achha laga.
ReplyDeleteaapko aage bhi padhne ka awsar milta rahega yahi umeed hai
khyaal rakhe apna
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