१.
हम उम्मीद मिलन की ले इन्तजार करते रहे।
हर कदम फूँक-फूँक कर जमीं पर धरते रहे ।
तुमनें इकबार भी ना कोशिश की समझने की,
हमीं नादां थे इक बुत से प्यार करते रहे ।
२.
दुख से घबरा कर , चलना तो ना छोड़े ।
गर राह लगे मुश्किल इक राह नयी जोड़ें ।
बेचारगी से अपनी,नजरों मे गिर ना जाना,
जिस ओर की हवा है खुद को उधर मोड़ें ।
३.
इक ओर गम होता हैं बिछड़ने का।
दूसरी ओर खुदा मिलन की आस है।
यहाँ रोनें-धोनें से कुछ ना होगा यारों,
यही तो जिन्दगी का इतिहास है।
पहला और अंतिम अच्छे लगे, दूसरा सुना सुना या पढा हुआ लगा.
ReplyDeleteमुझे तो दूसरा सब से अच्छा लगा , आखिरी पंक्ति बताती है , कि यह बाली जी ही हैं
ReplyDeleteदूसरा वाला काबिले तारीफ है. यूँ तो सभी अच्छे हैं हमेशा की तरह :)
ReplyDeleteसागर की तरह मन है मेरा जब भी लहरों से खेलता है
ReplyDeleteकुछ शेर जुबान से कहलाकर ही दम लेता है
deepak bharatdeep